ऐसी ही घणी रात थी,
सिमटा सारा शहर था,
अंधेरी गलियों में बस,
गूंज रहा दिलो का शोर था!
शहर में अजीब सा प्रकाश था,
मानो किसी बवंडर का एहसास था!
मुखोटे की दुनिया से होकर,
मायूसी का भी अलग उल्लास था!
सितारे बटोरने की प्यास थी,
पर प्यार की भी अंदर से आस थी।
दुनिया जीतने की रजा थी,
पर उत्तरण पर रोने की भी सजा थी!
~ वैभव